Thursday, January 19, 2012

क्या चुनाव ऐसे होते हैं?

ढ़आज चचा हंगामी लाल बहुत दिन बाद नजर आए थे। पर उनके चेहरे पर वो चमक नहीं थी जो
आम तौर इस ऋतु में होती है।आप यकीन मानिए मैं शीत ऋतु में चाची के हाथ के गोंद के लड्डू
खाने के बाद आने वाली चमक की बात नहीं कर रहा। दरअसल उनकी चमक का मौसम से कोई
ताल्लुक नहीं है पर हां फिजाओं से है। फिजा में जब भी चुनावी रंग नुमाया होता है हमारे चचा
की चमक एकाएक बढ़ जाती है। पर इस बार उनके चेहरे से चमक देख हमें बड़ी चिन्ता हुई। बड़ी
बेकरारी से हमने पूछ ही लिया.. चचा क्या बात है आपके फेवरेट सूबे में सियासी जंग चल रही है
पर आप पर तो असर ही नहीं।
इतना कहते ही जैसे मानो मैंने बर्र के छत्ते को छेड़ दिया हो, चाचा बौराए से बोले,,
बरखुरदार क्यों मजे ले रहे हो,, ये भी कोई चुनाव हैं,, मजाक है मजाक,...। अरे क्या ऐसे ही
चुनाव देखने के लिए इतना इन्तजार कर रहे थे.. बताओ,,, तो जरा,, तुम को भी इस सियासी
जंग का इंतजार था या नहीं,,, । बताओ बताओ,,।
अरे चचा बिल्कुल था, भला होता भी क्यों नहीं, पर ऐसा क्या हो गया जो तुम इतना परेशान हो।
अरे क्या हो गया..? कुछ नहीं हो रहा इसी बात का रोना है। न कोई किसी को कुछ कह
रहा है , न कोई किसी पर तंज कस रहा है। अरे यूं लखनवी तहजीब के साथ भी कभी वहां
चुनाव हुए हैं। वो तो भला हो वो चुनाव आयोग वालों का जो हाथियों पर पर्दा डलवा कर
थोड़ा सा रंग भर दिया वरना तो कुछ भी बाकी नहीं रहता। अब तुम ही बताओ वो राहुल और
उमा तो बुआ भतीजे हो गए। कैसे काम चलेगा,, अरे रिश्तेदारी निभाओगे या चुनाव लड़ोगे। न
माया कुछ बोल रहीं हैं न मुलायम कुछ तेवर दिखा रहे हैं। युवराजों की आपसी लड़ाई भी बहुत
सभ्य हो गई है। सारे इतिहास पे बट्टा लग जाएगा इस बार के चुनाव में। बताओ तो,, और तुम
कहते हो चिन्ता काहे कर रहे हो,,,। तुम ही बोलो क्या वाकई में चुनाव ऐसे होते हैं,, ।
चचा की बात सुन कर हम तो वाकई सोच में पड़े हुए हैं,, कि क्या वाकई चुनाव ऐसे होते हैं,,
आप क्या कहते हैं,,,?

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