Saturday, February 12, 2011

राहुल को वोट का पैमाना,,,,

फेसबुक पर एक साथी ने नवभारत टाइम्स में काम करने वाले शिवेन्द्र कुमार सुमन के ब्लॉग का लिंक पोस्ट किया। शीर्षक था लोग राहुल को वोट क्यों देते हैं। शीर्षक ने सहज उत्सुकता जगाई और जो पाया वो शिवेंद्र के ब्लॉग से साभार कट पेस्ट कर आपको भी पढ़वा रहा हूं। ,,,..


बात 2009 में हुए आम चुनाव की है। दिल्ली में वोटिंग हो गई थी। वोटिंग के दो-तीन बाद मैं ऑफिस कैंटीन में खाना खा रहा था। मेरी बगल में टाइम्स ऑफ इंडिया की एक महिला पत्रकार खाना खाने आई।

चुनाव का सीज़न था तो उसी की चर्चा चल पड़ी। उसने मुझसे पूछा, ‘आपने वोट दिया?’ मैंने सर हिलाते हुए कहा, ‘नहीं।’ वह चौंकी। थोड़ी तेज़ आवाज़ में पूछा, ‘क्यों?’ मेरा उत्तर था कि मेरे पास वोटर कार्ड नहीं है। उसने मुझे हिकारत भरी नज़रों से देखते हुए कहा, ‘गज़ब हैं आप! एक जर्नलिस्ट होकर वोटर कार्ड नहीं बनवा सकते?’ मैंने कहा, ‘2 बार कोशिश की थी, पर बन नहीं पाया। वे जो डॉक्युमेंट्स मांगते हैं, वे मेरे पास हैं ही नहीं।’ फिर वह चुपचाप खाना खाने लगी। मुझे लगा, मुझे भी उनसे कुछ बात करनी चाहिए।

मैंने पूछा, ‘आपने वोट दिया?’ उसने चहकते हुए कहा, ‘हां’ और फिर स्याही लगी हई अपनी उंगली दिखाते हुए बोली, ‘यह देखिए।’ मैंने कहा, ‘गुड।’ वह ऐसे मुस्कुराईं जैसे उसने बहुत बड़ा मैदान मार लिया हो और कोई डरपोक व्यक्ति उनके सामने खड़ा हो जो मैदान में उतरा ही न हो। इससे आगे मुझे और नहीं पूछना चाहिए था, लेकिन मन माना नहीं और मैंने फिर एक निजी सवाल दाग दिया। ‘किसको वोट दिया आपने?’ चहकते हुए बोली, ‘मैं नहीं बताऊंगी।’ फिर कुछ देर बाद खुद बोली, ‘कांग्रेस को।’ मैंने फिर सवाल दागा, ‘क्यों?’ उसका जवाब था, ‘कांग्रेस में राहुल गांधी जो हैं, इसलिए।’

मैंने पूछा, ‘आपको राहुल गांधी अच्छे लगते हैं?’ उसने कहां, ‘बेशक।’ मैंने पूछा,
‘राहुल गांधी की कौन सी बात आपको अच्छी लगती है?’ उसने कहा, ‘राहुल का डिंपल! वह जब मुस्कुराता है तो उसका डिंपल बहुत अच्छा लगता है, मैं उसी की कायल हूं। बाकी नेता (उसने कुछ क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं के नाम लिए) तो जानवरों की तरह लगते हैं, पता नहीं क्यों लोग उन्हें वोट देते हैं!
’ मैं चुप हो गया। जैसे एक झटके में मुझे परमज्ञान मिल गया। मेरे ज्ञान चक्षु खुल गए।

विस्तृत पढ़ने के लिए निम्न पते पर शिवेंद्र कुमार सुमन के ब्लॉग पर जा सकते हैं।

http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/bejhijhak/entry/%E0%A4%AE-%E0%A4%AC-%E0%A4%B0%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%A4

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