Friday, February 11, 2011

बासी कढ़ी में वफादारी की सीख का जलजला

राजस्थान की राजनीति की बासी कढ़ी मे इन दिनों उबाल आया हुआ है। प्रदेश के दोनों ही दलों में उठापटक का दौर चल रहा है लेकिन इस दौर के बीच एक जलजला अचानक आया और प्रदेश के एक राज्यमंत्री को जाने अनजाने में की गई एक टिप्पणी के लिए अपने पद की बलि देनी पड़ी। राज्य के सीमान्त इलाके से आए इस राजनेता को तो यह भी पता नहीं चला कि एक अच्छी और भली बात कहने के चक्कर में वे ऐसा क्या कह गए जिसने उनक सिर से लाल बत्ती का साया छीन लिया। बिचारे पार्टी में अपने काम के बदले हक के रूप में राजनीतिक नियुक्तियों का प्रसाद मांग रहे कार्यकर्ताओं को धीरज रखने और कर्म किए जा फल तो आलाकमान देगा की सीख दे रहे थे। इस्तीफे के बाद भी वे पत्रकारों से मासूमियत भरा सवाल करते रहे,, कि मैं कहां और क्या गलत कह दिया। मैं तो लोगों को पार्टी और सोनिया गांधी के प्रति वफादार रहने की सीख ही दे रहा था। मैं भी इसी वफादारी के बूते बकरियां चराते चराते मंत्री बना हूं और यही मैंने कहा था। अब ये तो कांग्रेस और उनकी पार्टी जाने की उनका एक मंत्री किस बात को और क्यों वफादारी मान रहा है। खैर इस इस्तीफे ने पार्टी के अन्य बड़बोले मंत्रियों में आशंकाओं के बादल गहरा दिए हैं। अब तो सरकार के होशिया मंत्री भी मीडिया से ऑफ द रिकार्ड ब्रीफिंग में जबरदस्त टिप्पणियां करने के बाद धीरे से पूछ लेते हैं,, कहीं कैमरे ऑन तो नहीं है,, पता चला शाम तक इस्तीफा देना पड़ जाएगा। ...बहरहाल मंत्रीमंडल में फेरबदल की हवाएं फिर तेज हो गई हैं पर विधानसभा सत्र और बजट की गहमागहमी के चलते यह अभी दूर की कौड़ी लगता है।
उधर भाजपा एक बार फिर बिना विधायक दल के नेता की सदारत में विधानसभा में उतरेगी जिससे जाहिर है विपक्ष की धार कुंद ही रहेगी। लेकिन डेढ़ साल के लम्बे अंतराल में एक सर्वमान्य नेता तक नहीं चुन पाना भाजपा के एक लोकतांत्रिक संगठन होने और पार्टी विद ए डिफरेंस के नारे को खोखला ही करता है। अब देखना होगा कि क्या वाकई भाजपा अपने अन्तरविरोधों से निपट कर एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभा पाती है या नहीं ।

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