Monday, June 2, 2008

पेट्रोल का स्टेटस स्टेटमेंट, तेरा क्या होगा रे....

आज हमारा एक मित्र घर आने वाला है, पत्नी- बच्चे सभी घबराए हुए, थोड़े सहमे हुए से लग रहे हैं, सहमे हुए तो हम भी हैं लेकिन ऊपर से चेहरे पर दिखाने भर के लिए ही थोड़ी बहादुरी से कह रहे हैं, अरे तो क्या हो गया जो पेट्रोल वाली गाड़ी से आ रहा है, अभी कल तक तो हम सभी एक बराबर ही थे। अब उसकी हैसियत थोड़ी ज्यादा हो गई है, पेट्रोल से चलने वाली गाड़ी मेंटेन कर रहा है तो क्या, है तो अपना यार ही। कहने को तो हम कह गए लेकिन घर के बरामदे में बिना पेट्रोल के खड़ी अपनी कार देख कर एक बार फिर हौले से दिल कांप गया। घर आने वाले मेहमान की हमारी दोस्ती जबरदस्त घुटती थी, पहले हम अक्सर कभी उनकी या कभी अपनी कार में कहीं कहीं घूमने आया जाया करते थे। लेकिन जब से पेट्रोल के दाम ने चक्रवृद्धिब्याज दर से और इंक्रीमेंट ने सरल ब्याज दर से बढ़ने का रुख किया है, गाड़ी में पेट्रोल भरवाना जरा हमारे बूते से बाहर की बात हो गई है। जब बढ़ते दामों की खबरें आने लगी थीं तभी हम भांप गए थे कि देर सवेर अपन इस लग्जरी से वंचित हो जाने वाले हैं सो अपन ने बंद मुट्ठी लाख वाली तर्ज पर पहले ही दफ्तर में अपने बेडौल होते शरीर और निकलती तौंद पर चिन्ता जाहिर करनी शुरु कर दी थी, जैसे ही दाम बढ़ने की खबरें पुख्ता हुई अपने राम एक साइकिल खरीद लाए। सबको पहले ही कह दिया था कि भाई मामला हैल्थ का है, सो स्टेटस भी बना रह गया और पेट्रोल से बजट पर पड़ने वाली मार से भी बच गए। लेकिन अब संकट दूसरा हो गया था, हमारे कुछ मित्र जिनकी आय अच्छी थी और अब भी पेट्रोल चलित वाहन अफोर्ड कर सकते थे, उनसे हमारा वर्ग भेद हो गया था। अरे क्लास डिफरेन्स, हम या मित्र तो जाहिर नहीं करते थे, पर श्रीमती जी अक्सर कह देती थीं कि फलाने की वाइफ कह रही थीं कि वे लोग कल लोंग ड्राइव पर गए थे। हमारी ऐसी किस्मत कहां? हम जैसे तैसे उन्हें सोने की साइकिल चांदी की सीट आओ चले डार्लिंग डबल सीट सुना कर बहला देते थे। संकट की इंतहा तब होती थी जब कोई मित्र अपने पेट्रोल वाहन चला पाने की हैसियत दिखाने पेट्रोल चलित वाहन पर को घर के दरवाजे पर ला खड़ा करता। तब हम कभी उनकी पेट्रोल से चल रही कार को देखते कभी अपनी बिना पेट्रोल के यूं ही खड़ी कार को देखते। कोई न कोई बहाना बना मामला रफा दफा करते। पर आज मामला कुछ ज्यादा ही गम्भीर होने वाला था, दोस्त की पत्नी हमारी पत्नी की कॉलेज की सहपाठी भी थीं, और उनसे छह माह पहले जब पत्नी की बात होती थी तब पेट्रोल कोई बड़ा संकट नहीं था, सो कार का खूब जिक्र हुआ था। अब वे अपनी कार से आएंगी और हमें कहीं साथ घूमने के लिए कह दिया तो हम अपनी कार कैसे चला पाएंगे। हमने उपाय भी ढ़ूंढ लिया था, पत्नी को कह दिया था कि उनके आते ही अपनी तबियत नासाज होने का बहाना कर लेना, कहीं जाने से बच जाएंगे। लेकिन कहते हैं न कि जिसका कोई नहीं होता उसका खुदा है यारों,,,,, तो भगवान ने हमारी ऐसी रखी कि बस पूछो मत। हुआ यूं कि वे लोग आए तो सही पर ऑटो से। ऑटो भी हमारे पास वाले बस स्टेण्ड का था यानि वे वहां तक बस से आए थे। आते ही कहने लगे, भई यहां की सड़कों पर बहुत ट्रैफिक है, और परकोटे में पार्किंग की प्रॉब्लम तो आप जानते ही हैं, जरा सिटी में शॉपिंग भी करनी थी सो सोचा की कार की जगह बस से ही चला जाए। इसलिए भई हम तो ऐसे ही चले आए। अब बारी हमारी थी, ज्यों ज्यों हमें लगने लगा कि पेट्रोल के सताए एक हम ही नहीं है दुनिया में... त्यों त्यों हमारी चेहरे की चमक बढ़ रही थी। श्रीमती भी स्टेटस कॉम्प्लेक्स से उबरने लगी थीं। हमने मन में जोर से कहा धन्न करतार तु ही सबका राखा, सबका तारनहार, अचानक देखा तो श्रीमती जी हमारी चद्दर खींच रही थीं और कह रही थीं, एक ऑफ का ही दिन तो मिलता है, उस दिन भी पूरी दोपहर सोने में गुजार देते हो,,, चलो कार निकालो घूमने चलना है,,, मैं उनींदा सा उनकी इस बात पर हंसता हूं अभी तो सपना था, पर सच होते कितने दिन लगेंगे,,,