Wednesday, November 23, 2011

प्रेस, कॉरपोरेट और काटजू

आम तौर पर लोगों को सुर्खियों में बनाए रखने वाला मीडिया इन दिनों खुद
सुर्खियों में है। वजह है प्रेस काउंसिल के नए मुखिया मार्कण्डेय काटजू
की ओर प्रेस के स्वेच्छाचार पर उठाई अंगुली। काटजू का इशारा खास तौर पर
इलेक्ट्रोनिक मीडिया की ओर है। प्रेस का दावा है कि वे स्वयं ही
स्वनियंत्रण की ओर बढ़ रहे हैं और उन्होंने आईबीए के बैनर तले इस तरह की
कवायद शुरू भी कर दी है। वे इसका उदाहरण भी देते हैं। लेकिन यह बहस नई
नहीं है और बहुत शिद्दत से महसूस की जा रही है। सबको अपने कर्तव्य का भान
करवाने वाला स्वयं क्यों निरंकुश हो जाए। जब हर कोई किसी न किसी नियामक
के अधीन है तो फिर प्रेस को भी नियामक के अधीन क्यों नहीं होना चाहिए।
खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। हम जब तब देखते रहते हैं तमाम तरह की
स्टोरियां महज सनसनी बनाने के लिए तरह तरह के साउण्ड और विजुअल इफेक्ट के
साथ पेश की जाती हैं। मीडिया में से इन्फोर्मेशन गायब हो गई है और
एंटरटेनमेंट बढ़ गया है। ऐसे में काटजू की शिकायत समीचीन पड़ती है क्यों
नहीं सबकी खबर रखने वाला मीडिया भी अपने किए कहे पर जवाबदेह रहे।

1 comment:

गंगा सहाय मीणा said...

सही कहा आपने. मीडिया के अंदर से ही लोग यह सवाल उठायेंगे तभी मीडिया अपने जवाबदेही सुनिश्चित कर पायेगा. आत्‍मालोचना बेहतरी की शुरुआत होती है. साधुवाद.