Tuesday, December 16, 2008

होम लोन- मन्दी की अनोखी मंडी

लीजिये जनाब एक बार फ़िर से होम लोन की मण्डी सज गई है। प्रोपर्टी बाज़ार के सूरमाओं की बांछे खिल गई हैं। , हमारा इतना कहना था की चाचा हंगामी लाल एकदम से बिगड़ पड़े, कहने लगे तुम को तो हर बात मैं राजनीति ही दिखाई पड़ती हैं। अब यदि कर्जा सस्ता हुआ हैं, गरीब को घर मिल रहा हैं, तो तुम्हारे पेट में क्यों बल पड़ रहे हैं, काहे इसे मण्डी कह रहे हो?
हम कहे चाचा , बात ग़रीब या अमीर की नही हैं, सरकार की भी नही हैं, है तो बस प्रोपर्टी बाज़ार के मदारियों की हैं, उनकी डुगडुगी बजेगी और नौकरीपेशा गरीब मारा जाएगा, बैंक वाले मिल कर ताली बजायेंगे।
पाँच साल पहले भी ऐसी ही मण्डी सजी थी, खूब कर्जा सस्ता हुआ था। चौदह से सात फीसदी तक गिर गया था, हर कोई खोमचा लगाये आवाज लगा रहा था मकान ले लो, मकान लेलो और अपने पीछे एक रहाडी पर कर्ज बांटने वाले बैंक के मेनेजर को बिठाये हुए हाथों हाथ नए मकान को गिरवी रखवाने का पूरा प्रबंध किए रहता था। तब लोंगो ने खूब जम के मकान खरीदे । मकान थे की कम नही पड़ते थे बस दाम जरा बढ़ जाते तो बैंक वाले लोन अमाउंट बढ़ा देते और कहते की ई ऍम आई में कुछ सौ रुपये बढ़ जायेंगे बस। सो लोग लगे बड़े और ऊंचे, बढ़िया मकान खरीदने। बेचने वाले तो बेच गए। उल्टा सीधा सब ठेल गए। कुछ खुद रखा कुछ अपने राजनेतिक आकाओं को खिला गए और पार्टी में बढ़िया ओहदा पा गए । पीछे बच गए किराये की रकम में अपने घर का सपना साकार करने वाले लेनदार और उम्रभर किराये के रूप में सूद पाने वाले देनदार।
इतनी बात सुन चाचा से रहा नही गया फ़िर लपक कर बोले देखो ये किरायेदार पुराण हमें मत सुनाओ , मुझे तो बस इतना बताओ की इस सबसे तुम्हारे पेट में क्यों दर्द उठ रहा हैं?
चाचा पहले पूरी बात सुनो, फ़िर कुछ कहना , चलो एक बात बताओ, तुम अभी किराए के मकान में रहते हो?
हाँ।
कितना किराया देते हो?
दो हजार
मान लो तुम्हारा मकान मालिक किराया बढ़ा दे तो ? तीन हज़ार कर दे तो?
में तो मकान बदल लूँगा। तीन हज़ार कोई मेरे जैसा आदमी दे सकता हैं, बच्चों की फीस कंहासे लाऊँगा?ना बाबा न मकान बदलना ही भला।
सही कह रहे हो चाचा तुम तो मकान बदल लोगे पर ये बैंक के किरायेदार और अपन घर के मालिक तो मकान भी नही बदल सकते। समझे ?
सही कह रहे हो। पर फिर भी?
क्या फिर भी? ये बैंक वाले जब चाहे तब कोई न कोई बहाना बना कर ब्याज बढ़ा देते हैं। अब ये जो नया पासा फेंका हैं, सरकार के दबाव में तो इससे पुराने कर्जदारों को तो कुछ मिलना नही हैं, इन्हे लूटने के लिए नए कर्जदार और मिल जायेंगे । मंदी के नाम पर मण्डी का खेल हो रहा हैं। बैंक और बिल्डर चोक छक्के मारेंगे और हम तुम बाउंड्री लाइन के बाहर से बोल ला ला कर देंगे ।
अब के चचा बोले, बात तो तुम्हारी दमदार हैं भतीजे, लेकिन इंसान बेचारा क्या करे सपनो को हकीक़त में बदलते हुए ठगा रह जाना उसका मुकद्दर हैं।

2 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

VERY GOOD. NARAYAN NARAYAN

vinod krishna said...

bahut khoob likha aapne.chacha hangamilal ke kirdar ke jariye bhavabhivyakti kabile tarif hai.-vinod